भोजपुरी कमाल की भाषा है| जो बातें आपको किसी और भाषा में मामूली-सी लगेंगी, वही भाषा भोजपुरी में सुनने में अलग ही मज़ा आता है| कुछ ऐसी भोजपुरी कहावतें और मुहावरे, जिन्हें पढ़ कर आपका मूड सेट हो जाएगा|
- नव के लकड़ी, नब्बे खरच– बेवकूफी में खर्च करना
- खेत खाय गदहा, मारल जाय जोलहा– किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलना
- नन्ही चुकी गाजी मियाँ, नव हाथ के पोंछ– सम्भलने से परे
- ना नईहरे सुख, ना ससुरे सुख– अभागा
- बिनु घरनी, घर भूत के डेरा– नारी बिना घर सूना
- सुपवा हंसे चलनिया के कि तोरा में सतहत्तर छेद– खुद दोषी होकर किसी को कोसना
- सब धन बाईसे पसेरी– सब एक समान
- रामजी के चिरईं, रामजी के खेत, खाले चिरईं भर-भर पेट– अपने धन पर ऐश
- अबरा के मउगी, भर घर के भउजी– कमजोर का मजाक बनाना
- हवा के आंगा, बेना के बतास– सूरज को दीपक दिखाना
- फुटली आँखों ना सोहाला– बिल्कुल नापसंद
- चिरईं के जान जाए, लईका के खेलवना– किसी का कष्ट देख खुश होना
- घाट-घाट का पानी पी के होखल बड़का संत– सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को
- नवकि में नव के पुरनकी में ठाढ़े– नये-नये को इज्जत देना
- लईकन के संग बाजे मृदंग, बुढ़वन के संग खर्ची के दंग– जब जैसा तब तैसा
- इहे छउड़ी इहे गाँव, पूछे छउड़ी कवन गाँव– जानबूझ के अनजान बनना
- घीव के लड्डू, टेढो भला– मांगी हुई चीज़ हर हाल में अच्छी
- उधो के लेना, ना माधो के देना– अलग-अलग रहना
- काठ के हड़िया चढ़े न दूजो बार– बिना अस्तित्व का
- गुरु गुड़ रह गइलन, चेला चीनी हो गइले– गुरु से आगे निकल जाना
- घर के भेदिया लंका ढाहे– चुगली करने वाला
- मुअल घोड़ा के घास खाइल– मिथ्या आरोप
- भाग वाला के भूत हर जोतेला– भाग्यवान का काम बन जाना
- जइसन बोअबऽ, ओइसने कटबऽ– जैसी करनी वैसी भरनी
- जेकर बनरी उहे नचावे, दोसर नचावे त काटे धावे– जिसकी चीज़ उसी की अक्ल
- दुधारू गाय के लातो सहल जाला– लाभ मिले तो मार भी सहनी पड़ती है
- बाण-बाण गइल त नौ हाथ के पगहा ले गइल– खुद तो डूबे दूसरे को भी ले डूबे
- नया-नया दुलहिन के नया-नया चाल– नई प्रथा शुरू करना
- जे न देखल कनेयापुतरी उ देखल साली– उन्नति कर जाना
- जेतना के बबुआ ना ओतना के झुनझुना– अधिक खर्च करना
- बाग़ के बाग़ चउरिये बा– बेवकूफ जनता
- ऊपर से तऽ दिल मिला, भीतर फांके तीर– धोखेबाज
- पइसा ना कउड़ी बीच बाजार में दौड़ा-दौड़ी– बिना साधन के भविष्य की कल्पना
- माई चले गली-गली, बेटा बने बजरंगबली– खुद की तारीफ़ करना
- रूप न रंग, मुँह देखाइये मांगताड़े– ठगी करना
- खाए के ठेकान ना, नहाये के तड़के– परपंच रचना
- रहे के ठेकान ना पंड़ाइन मांगस डेरा– असमर्थता
- लगन चरचराई अपने हो जाई– समय पर काम बन जाना
- भूख त छूछ का, नींद त खरहर का– आवश्यकता प्रधान
- गज भर के गाजी मियाँ नव हाथ के पोंछ– आडम्बर
- भेड़ियाधसान– घमासान, भेड़-चाल
- भर घरे देवर, भसुरे से मजाक– उल्टा काम करना
- हम चराईं दिल्ली, हमरा के चरावे घर के बिल्ली– घर की मुर्गी दाल बराबर
- अगिला खेती आगे-आगे, पछिला खेती भागे जागे– अग्र सोची सदा सुखी
- हंसुआ के बिआह, खुरपी के गीत– बेमतलब की बात
- ओस के चटला से पिआस ना मिटे– ऊँट के मुंह में जीरा
- आंगा नाथ ना पाछा पगहा– बिना रोक-टोक के
- ओखर में हाथ, मुसर के देनी दोष– नाच न जाने आँगन टेढ़ा
- काली माई करिया, भवानी माई गोर– अपनी-अपनी किस्मत
- माड़-भात-चोखा, कबो ना करे धोखा– सादगी का रहन-सहन
- करम फूटे त फटे बेवाय– अभागा
- कोइला से हीरा, कीचड़ से फूल– अद्भुत कार्य
- तेली के जरे मसाल, मसालची के फटे कपार– इर्ष्या करना
- तीन में ना तेरह में– कहीं का नहीं
- दउरा में डेग डालल– धीरे-धीरे चलन
- भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले– मौसमी अंदाज
- कंकरी के चोर फाँसी के सजाए– छोटे गुनाह की बड़ी सज़ा
- कहला से धोबी गदहा पर ना चढ़े– मनमौजी
- दाल-भात के कवर– बहुत आसन होना
- होता घीवढारी आ सराध के मंतर– विपरीत काम करना
- ससुर के परान जाए पतोह करे काजर– निष्ठुर होना
- बिलइया के नजर मुसवे पर– लक्ष्य पर ध्यान होना
- लूर-लुपुत बाई मुअले प जाई– आदत से लाचार
- हड़बड़ी के बिआह, कनपटीये सेनुर– हड़बड़ी का काम गड़बड़ी में
- बनला के सभे इयार, बिगड़ला के केहू ना– समय का फेर
- रोवे के रहनी अंखिये खोदा गइल– बहाना मिल जाना
- बुढ़ सुगा पोस ना मानेला– पुराने को नयी सीख नहीं दी जा सकती
- कानी बिना रहलो न जाये, कानी के देख के अंखियो पेराए– प्यार में तकरार
- अक्किल गईल घास चरे– सोच-विचार न कर पाना
- घर फूटे जवार लूटे– दुसरे का फायदा उठाना
- ना खेलब ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ब– किसी को आगे न बढ़ने देना
- एक मुट्ठी लाई, बरखा ओनिये बिलाई– थोड़ी मात्रा में
- हथिया-हथिया कइलन गदहो ना ले अइलन– नाम बड़े दर्शन छोटे
- चउबे गइलन छब्बे बने दूबे बन के अइलन– फायदे के लालच में नुकसान करना
- आन्हर कुकुर बतासे भोंके– बिना ज्ञान के बात करना
- बईठल बनिया का करे, एह कोठी के धान ओह कोठी धरे– बिना मतलब का काम करना
- भूखे भजन ना होइहें गोपाला, लेलीं आपन कंठी-माला– खाली पेट काम नहीं होता
- ना नीमन गीतिया गाइब, ना मड़वा में जाइब– ना अच्छा काम करेंगे ना पूछ होगी
- लाद दऽ लदवा दऽ, घरे ले पहुँचवा दऽ– बढ़ता लालच
- पड़लें राम कुकुर के पाले– कुसंगति में पड़ना
- अंडा सिखावे बच्चा के, बच्चा करु चेंव-चेंव– अज्ञानी का ज्ञानी को सिखाना
- जे ना देखन अठन्नी-चवन्नी उ देखल रूपइया– सौभाग्यशाली
- भोला गइलें टोला प, खेत भइल बटोहिया, भोला बो के लइका भइल ले गइल सिपहिया– ना घर का ना घाट का