Ballia Bindi Industry – ODOP

अगर महिलाओं के माथे पर बिंदिया न हो तो उनका सौंदर्य पूरा नहीं होता। बलिया के मनियर की तमाम खासियतों में से एक है यहां का बिंदी उद्योग। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जिला एक उत्पाद यानी वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट के तहत अपनी सूची में बलिया को इसी बिंदी उद्योग की बदौलत डाला है।

मनियर कस्बा दशकों से बिंदी या टिकुली उद्योग के लिए मशहूर है। बिंदी के बहुत से कुटीर उद्योग यहां पर वर्षों से चल रहे हैं। इस उत्पाद का व्यापार स्थानीय बाजारों के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में भी होता है। बताया जाता है कि मनियर में बिंदी उद्योग की शुरुआत 1950 के आसपास हुई थी और तब शीशे को गला कर बिंदी बनती थी। उस पर सोने और चांदी का पानी चढ़ाकर खूबसूरत बिंदी बनाने का काम किया जाता था। इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इ लोग कोलकाता और अन्य जगहों पर जाकर नई डिजाइन की बिंदी बनाने के गुर भी सीखते थे और उसे यहां के कारीगरों से बनवाते थे। 1975 के आसपास शीशे की बिंदी का चलन समाप्त हुआ और बाजारों में नए किस्म की बिंदी आने लगी। हालांकि बदलते समय के अनुसार मनियर का बिंदी उद्योग तरक्की की राहों में इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस ओर कारीगर अपना पांव ही आगे नहीं बढ़ाना चाहते।

एक आंकड़े के अनुसार जिले में डेढ़ हजार से ज्यादा महिलाएं बिंदी बनाने का काम करती हैं। मनियर और आसपास के कस्बों में बिंदी के काम में लगी महिलाओं को वाराणसी के व्यापारी रेडीमेड बिंदी पहुंचाते हैं, वहीं कस्बे के भी कई व्यापारी हैं जो दिल्ली या गाजियाबाद से बिंदी बनाने का कच्चा माल लाते हैं और बिंदी कारोबार से जुड़ी महिलाओं में बांट देते हैं। महिलाएं घर का काम निपटाने के बाद बिंदी के काम में लग जाती हैं और उसे कागज के पत्ते पर चिपका कर सेट में बंडल बना देती हैं। इसके लिए उन्हें एक दिन की मजदूरी मात्र 35 से 45 रुपये मिलती है। इसे महिलाएं पार्ट टाइम जॉब के तौर पर करती हैं।

समय के साथ बिंदी उद्योग के लिए भी आधुनिक मशीनें आ गई हैं और तरह तरह की डिजाइनर बिंदी बनने लगी हैं। मनियर की महिला कारीगरों की डिजाइन की गई बिंदी आपको दिल्ली, मुंबई, कोलकाता से लेकर देश ही नहीं दुनिया के कई देशों में नजर आ सकती है। एक अनुमान के मुताबिक बलिया जिले से बिंदी का कारोबार सालाना 25 से 30 करोड़ का है और पूरे ज़िले के सौ से ज्यादा गांव के करीब पांच हजार से ज्यादा परिवार इस उद्योग से जुड़े हैं। मनियर के अलावा बिंदी उद्योग से जुड़े कुछ गांव हैं - अपायल, बांसडीह, बेरुआरबारी, हनुमानगंज, सुखपुरा, गड़वार, नवानगर, पंदह, सिकंदरपुर, बेल्थरारोड, रेवती आदि। इन गांवों से निकल कर ये रंग बिरंगी और डिजायनर बिंदियां तमाम बाजारों और धार्मिकस्थलों के करीब सजी हजारों दुकानों में खूब बिकती हैं। दिल्ली के सदर बाजार में तो इसके कई थोक व्यापारी हैं। श्रीलंका, मलेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश से लेकर एशिया, यूरोप और अमेरिकी देशों में इन डिजाइनर बिंदियों की खूब मांग है।

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